अल्लाह पर ईमान रखना दरअसल अल्लाह को याद करना और अल्लाह का जिक्र करना है। मगफिरत नेक और रोजादार बंदे पर अल्लाह की नवाजिश (कृपा) होगी। इसको यूं समझ सकते हैं कि जब हमें किसी चीज की जरूरत होती है तो हम उसे खोजते हैं या तलाश करते हैं, जहाँ वो चीज रखी है वहाँ ढूँढते हैं या फिर उसको पुकारते हैं जिसके पास वो चीज रखी हुई है। मगफिरत ऐसी ही चीज है जो अल्लाह के पास है। ईमान (अल्लाह पर) लाकर हमें अल्लाह को पुकारना (याद करना) होगा। रोजा ईमान की मजबूती है। सही तरीके से रखा गया रोजा, रोजेदार के लिए अल्लाह की तरफ से मगफिरत की मंजूरी भी है।
कुरआने-पाक के अट्ठाइसवें पारे की सूरह तगावुन की पंद्रहवीं आयत में जिक्र है-तुम्हारे अमाल (क्रियाएँ) और औलाद बस तुम्हारे लिए एक आजमाइश की चीज हैं और जो शख्स इनमें पड़कर अल्लाह को याद रखेगा तो अल्लाह के पास उसके लिए बड़ा अजर (पुण्य) है। यह अज्र दरअसल मगफिरत का इशारा है और रोजा इसका जुज (घटक) है।
Post a Comment