नागदा जं.-प्राचीन पद्धति से दर्द से निजात दिला रहे शहर के युवा चिकित्सक कुरैशी

MP NEWS24- बीएचएमएस पद्धति से चिकित्सा क्षेत्र में कदम रखने वाले शहर के युवा शादाब कुरैशी द्वारा प्राचीन पद्धति का प्रशिक्षण प्राप्त कर शहर में सेवाऐं प्रदान की जा रही है। चम्बल मार्ग, ईदगाह के समीप स्थित अपने क्लीनिक पर ऐसे कई असाध्य दर्द का निवारण किया जा रहा है जो कई लोगों को वर्षो से था। कपिंग थेरेपी के माध्यम से जिस प्रकार से कई जटील बिमारियों का उपचार उनके द्वारा किया जा रहा है वह काफी प्रशंसनीय है। साथ ही वर्षो पूर्व के दर्द एवं अन्य बिमारियों से भी इस थैरेपी की माध्यम से कई नागरिकों को अब तक लाभ पहुॅंच चुका है।

क्या होती है कपिंग थेरेपी
क्षेत्र के नागरिकों को चिकित्सकीय सेवाऐं देने वाले डॉ. कुरैशी बताते हैं कि कपिंग थेरेपी के लिए शीशे का कप इस्तेमाल करके वैक्यूम पैदा किया जाता है जिससे कि कप बॉडी से चिपक जाए। अब इसके लिए मशीन का इस्तेमाल होता है। कपिंग करने के तीन से पांच मिनट बाद दूषित खून जमा हो जाता है। जमा हुए गंदे खून को शरीर से निकाल दिया जाता है। हेल्थ से जुड़ी समस्या के लिए कपिंग थेरेपी ली जाती है तो जिस पॉइंट पर बीमारी की पहचान होती है वहीं पर कपिंग की जाती है। अगर बीमारी अपने शुरुआती स्टेज में हो तो दो सीटिंग में बीमारी खत्म हो जाती है।
उन्होंने बताया कि इस थेरेपी से स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं में भी आराम मिलता है। कमर दर्द, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल डिस्क, पैरों की सूजन और झनझनाहट जैसी समस्याओं में यह थेरेपी काफी फायदेमंद है। इसी के साथ ही जोडों में दर्द, कमर दर्द, कन्धों का दर्द, साईटीका, सीरदर्द, नसों का दबना, पीठ दर्द के अलावा चर्म रोग, लकवा, गंजापन, पिम्पल्स, दराद, खुजली आदि में भी यह कारगर साबित हुई है। इस थेरेपी से तनाव में भी आराम मिलता है साथ ही शरीर में बल्ड सर्कुलेशन सही तरीके से होता है।
बीमारियों से निजात पाने के लिए कैसे होती है कपिंग थेरेपी
इस थेरेपी में सबसे पहले मरीज का जरूरी ब्लड टेस्ट होता है और उससे जुड़ी बीमारी का एक्स रे किया जाता है। बीमारी के अनुसार गर्दन या गर्दन के नीचे या पीठ में कपिंग की जाती है, पहले यह थेरेपी कुल्हड़ से की जाती थी लेकिन अब कप से की जाती है। हवा का कम दबाव बनाने के लिए कप को गर्म करके कप के अंदर मौजूद हवा और लौ की मदद लेकर या फिर कपों को गर्म सुगंधित तेलों में डुबोकर त्वचा पर लगाया जाता है। जैसे-जैसे कप के अंदर मौजूद हवा ठंडी होती है यह त्वचा को सिकोड़ती है और थोड़ा अंदर की ओर खींच लेती है, अब तो वैक्यूम के लिए मशीन का इस्तेमाल होता है इसके अलावा रबड़ कप का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसे करने पर कप सामान्य रूप से नरम ऊतक पर ही इस्तेमाल किये जाते हैं। उपचार के आधार पर कप को हटाने के बाद इसके निशान भी रह जाते हैं। यह साधारण लाल रंग के छल्ले की तरह होते हैं जो जल्दी ही दूर भी हो जाते हैं।

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