यहां यह बात काबिलेगौर है कि सब्र (सबरा) और रहम (गफरा) मर्तबे और अजमत (गौरव-गरिमा) बढ़ाने वाले हैं और पैरोकार भी। रहम रास्ता है अजमत का। सब्र, सीढ़ी है बुलंदी की। तो इसका सीधा-सा जवाब है कि मुकम्मल ईमानदारी और अल्लाह की फरमाबर्दारी के साथ रखा गया रोजा और रोजदार इसकी पहचान है। नेकनीयत और पाकीजगी के साथ रखे गए रोजे का नूर अलग ही चमकता है। जज्बा-ए-रहम (दया का भाव) रोजेदार की पाकीजा दौलत है और जज्बा-ए-सब्र रोजेदार की रूहानी ताकत है।
कुरआने-पाक में अल्लाह को सब्र करने वाले का साथ देने वाला बताया गया है (इन्नाल्लाहा मअस्साबेरीन यानी श्अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।) रोजा इम्तहान भी है और इंतजाम भी। सब्र और संयम रोजेदार की कसौटी है इसलिए रोजा इम्तहान है।
सब्र की कसौटी पर रोजेदार कामयाब यानी खरा साबित हुआ तो इसका मतलब यह कि उसने आखिरत (परलोक) का इंतजाम कर लिया। इसलिए रोजा इंतजाम है। कुल मिलाकर यह कि रोजा रहम का हरकारा और सब्र का फौवारा है।
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