MP NEWS24-पवित्र रमजान माह का आज बुधवार को चौथा रोजा है। हदीस है कि रोजा नेकी का छाता है। जिस तरह छतरी या छाता बारिश या धूप से अपने लगाने वाले की हिफाजत करता है, ठीक उसी तरह रोजा भी रोजेदार (रोजा रखने वाले) की हिफाजत (सुरक्षा) की गारंटी है। शर्त यह है कि रोजा शरई तरीके (धार्मिक आचार संहिता) से रखा जाए।तमाम बुराइयों पर लगाम लगाता है रोजा, मोक्ष की सीधी राह
अहकामे-शरीअत यह है कि रोजा रखने में बुग्ज (कपट), फरेब (छल), फसाद (झगड़ा), झूठ और बेईमानी से बचा जाए। जाहिर है कि कोई शख्स जब नेक नीयत और अच्छे जज्बे के साथ रोजा रखता है, अल्लाह की रजामंदी हासिल करने के लिए रोजा रखता है यह सोचकर रोजा रखता है कि अल्लाह सब देख रहा है यानी अल्लाह के खौफ का ख्याल करके रोजा रखता है तो उसमें पाकीजगी-ए-ख्यालात (पवित्र भावनाएँ) पैदा होती है जो नेक अमल के जरिए रोजे को उसका (रोजेदार का) पैरोकार बनाती है। यानी परहेजगारी (संयम और सात्विक कर्म) के साथ रखा गया रोजा अल्लाह (ईश्वर) के सामने रोजेदार की ईमानदारी का तो तरफदार है ही, पाकीजगी (विपत्रता) का पैरोकार भी है। परहेजगारी से रखा गया रोजा खुद सिफारिश बनकर रोजेदार के लिए अल्लाह की नेमतों के दरवाजे खोलता है।
पवित्र कुरआन के उन्तीसवें पारे (अध्याय) की सूरत अलमुरसिलात की इकतालीसवीं-बयालीसवीं आयतों में जिक्र है ’इन्नाल मुत्तकीना फी जिलालिवँ व अयूनिवँ व फवाकिहा मिम्मा यशतहन’ यानी ’’बेशक परहेजगार (संयमी-सत्कर्मी) सायों में (छाँह में) और चश्मों में (झरनों में) होंगे और मेवों (ड्राय फ्रूट्स) में होंगे जो उनको मरगूब (पसंदीदा-रुचिकर होंगे)।’’
कुल मिलाकर यह कि नेक अमल (सत्कर्म) और परहेजगारी (संयम के साथ रखा गया रोजा रोजेदार की दीनदारी की दलील भी है और हिफाजत की अपील भी। चौथा रोजा हिफाजत का कवच है अल्लाह की अदालत में रोजा रोजदार का वकील है। इंशा अल्लाह! जिसका नतीजा होगा फतह (जीत) और फजल (कृपा ईश्वर की)।
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