उन्तीसवां रोजा रमजान की रुखसत के इशारे के साथ रोजादारों और नेक बंदों से अल्लाह पर ईमान के साथ दुआ का पैगाम दे रहा है। माहे-रमजान में रोजे रखते हुए तिलावते कुरआन करते हुए (कुरआन का पाठ करते हुए), इबादत करते हुए अनजाने में जो भूलें या गलतियां हुई हैं, रोजादार की किसी बात से किसी का दिल दुख गया हो। फर्ज में कोई कमी रह गई हो, न चाहते हुए भी यानी जब्त करने के बाद भी गुस्सा आ गया हो, वादाखिलाफी हो गई हो। अनजाने ही कोई कोताही हो गई हो तो तौबा-ए-अस्तगफार (गुनाहों का प्रायश्चित) करके अल्लाह से अपने मां-बाप, मुल्क और दुनिया की भलाई के लिए बहुलता से दुआ मांगना चाहिए।
और हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है
अगरचे दुनिया लज में रोजादार बजाते खुद मां-बाप, मुल्क आ जाते हैं। फिर भी रोजादार का फर्ज है कि मां-बाप के लिए दुआ मांगे, क्योंकि कुरआने-पाक की सूरह अन्कबू्त की आठवीं आयत में अल्लाह का इरशाद (आदेश) है- और हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है।
इसी तरह कुरआने पाक की सूरह इब्राहीम की इकतालीसवीं आयत में अल्लाह का इरशाद (आदेश) है ऐ परवरदिगार हिसाब (किताब) के दिन मुझको और मेरे मां-बाप को और मोमिनों (ईमान वालों) को मगफिरत (मोक्ष)दे। हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान है कि अपने मां-बाप, अपने मुल्क और दुनिया की खुशहाली और अमन-सुकून के लिए अल्लाह से दुआ करें। क्योंकि दिल से जो निकली दुआ खाली नहीं जाती। यानी वो अल्लाह से टाली नहीं जाती। (आमीन!)
Post a Comment