नागदा- इच्छा शक्ति हो तो क्या नहीं होता.... रांगोली 30 बेड प्रत्येक पर आॅक्सीजन, बीमा एक माह प्रारंभ होने में लगा आज भी सिलेण्डर के भरोसे युवा उद्यमी मोतीसिंह ने पिता के सपने को किया साकार प्रारंभ हुआ कोविड केयर सेंटर



 जं. निप्र। कहते है यदि इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं किया जा सकता है, लेकिन दुसरी और पावर, पैसा होने के बाद भी इच्छाशक्ति नहीं होने से कुछ भी नहीं हो पाता है। आज हम यहाॅं शहर में प्रारंभ होने वाले दो कोविड केयर सेंटरों की बात कर रहे हैं। सबसे पहले सफलता की कहानी बताऐंगे क्योंकि महामारी के दौर में सुखद खबरों का अकाल जो पडा हुआ है। वहीं दुसरी बीमा अस्पताल में बडे-बडे नेताओं के भरोसे प्रारंभ हुआ कोविड सेंटर आज भी आॅक्सीजन सिलेण्डर के भरोसे चल रहा है। यहाॅं लाखों के दान के बाद भी वह व्यवस्थाऐं नहीं जुट पाई जिसकी जनता को दरकार है।

एक पुत्र का पिता के सपने को पुरा करने का जज्बा
मध्यप्रदेश कर्मकार मण्डल के पूर्व अध्यक्ष सुल्तानसिंह शेखावत ने कोरोना महामारी के दौरान शहर एवं आसपास के नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाऐं नहीं मिल पाने, अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं होने से दुःखी होकर अपने पुत्र मोतीसिंह से उनकी होटल को कोविड केयर सेंटर में बदलने की इच्छा जाहिर की। पुत्र ने पिता के इस नेक जज्बे को सलाम करते हुए उनकी बातों पर अक्षरसः पालन किया और उसी दिन से होटल को कोविड सेंटर में बदलने के प्रयास प्रारंभ कर दिए। मोतीसिंह ने मात्र 15-25 दिनों के भीतर ही ऐसी व्यवस्था की कि न तो आॅक्सीजन के लिए किसी मरीज के परिजन को कहीं और भागना होगा और ना ही उपचार के लिए। कोविड सेंटर के प्रत्येक बेड पर पाईप लाईन के माध्यम से आॅक्सीजन सप्लाय होगी तथा 20 लाख की लागत से लगाए गए आॅक्सीजन प्लांट से सीधे आॅक्सीजन पूर्ण वेग के साथ मरीजों तक पहुॅंचेगी। ऐसे में समुचित वेग पर आॅक्सीजन प्राप्त होने पर मरीजों के स्वास्थ्य में भी जल्द सुधार होगा। 30 बेडेड उक्त सेंटर सोमवार से प्रारंभ हो गया है।

पुरा प्रशासन एवं राजनेता लग गए लेकिन आज भी आॅक्सीजन सिलेण्डर के भरासे बीमा
विगत एक माह पूर्व कोरोना महामारी की भयावहता के चलते प्रशासन द्वारा नागदा में भी कोविड सेंटर बनाकर उपचार करने की पहल की। प्रशासन, सत्ता में बैठे हुए बडे-बडे नेताओं के भरोसे कोविड सेंटर प्रारंभ करने की भूल कर बैठा जिन संसाधनों को प्रशासनिक अधिकारियों को अपने प्रयासों एवं प्रभाव से जुटाना था उसकी बागडोर राजनेताओं के हाथों में चली गई। फिर क्या था दो-तीन सप्ताह तक तो बीमा रंगरोगन आदि ही चलता रहा। आॅक्सीजन की लाईन डल गई लेकिन सप्लाय प्रारंभ नहीं हो पाई। आलम यह है कि यहाॅं 90 से अधिक आॅक्सीजन लेवल वाले मरीजों का ही होम क्वारेंटाईन के समान उपचार किया जा रहा है तथा शासकीय दवाईयाॅं चिकित्सकों की उपस्थिति में दी जा रही है। बीमा का आलम यह है कि राजनेताओं ने 8-10 लाख की उद्योग द्वारा दी गई सीएसआर की राशि से मात्र 4 आॅक्सीजन कंसंट्रेटर एवं 5 आॅक्सीजन के छोटे बाटले प्रदान कर दिए, शेष राशि कहाॅं गई किसी को नहीं पता। यह तो गनीमत थी कि बीमा के हालात देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अभय चैपडा की मांग पर प्रभारी मंत्री मोहन यादव ने सिविल हाॅस्पिटल में आईसीयू एवं आईसोलेशन वार्ड प्रारंभ कर दिए नही ंतो नागदा की हालत महामारी में और भी भयावह हो सकती थी।

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लफ्बाजी एवं काम में होता है फर्क

इन दोनों बातों को लिखना कोई तुलना करना नहीं है। परन्तु जिस प्रकार से क्षेत्र के नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भटकना पडा तथा जान तक गवानी पडी। उस दौरान भी प्रशासन एवं सत्ताधारी नेता यदि जनता के साथ सिर्फ छल करे तो कलम कैसे चुप रहे। आलम यह है कि सेवा के नाम पर ढोंग रचा गया जिसकी सच्चाई जनता तक पहुॅंचना बहुत ही जरूरी है।
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