नागदा - कोविड-19 के इलाज के लिये रेमडेसिविर पहली दवा के रुप में एफडीए द्वारा एप्रुव - डाॅ. कुमरावत



Nagda(mpnews24)।   शहर के जाने-माने चिकित्सक एवं पूर्व ब्लाॅक मेडिकल आॅफिसर डाॅ. संजीव कुमरावत ने जानकारी देते हुए बताया कि कोविड-19 के उपचार में रेमडेसिविर को पहली दवा के रूप में एफडीए द्वारा एप्रुवल मिल गया है।


डाॅ. कुमरावत ने बताया कि अमेरिका मे नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसिस (एनआईएआईडी) के रेमडेसिविर पर तीन फेज मे ट्रायल के बाद एफडीए ने एप्रूवल दिया। वही डब्ल्यूएचओ ने 30 देशो के 11266 मरीजों पर मार्च से अक्टूबर में किये गये ट्रायल के आधार पर रेमडेसिविर को अनुपयोगी बताया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के ट्रायल मे रेमडेसिविर उपयोगी और डब्ल्यूएचओ के ट्रायल मे अनुपयोगी, इस अंतर को समझने के लिये हम दोनों ट्रायल को जानते है। पहले हम अमेरिका के थ्री फेज ट्रायल को देखते है.इसकी पहली फेज मे 1062 मरीजों पर ट्रायल किया, जिसमे आधे मरीजों को रेमडेसिविर दस दिन तक दी और आधे को रेमडेसिविर नही दी। इसके निष्कर्ष में उन्होंने पाया कि जिन मरीजों को रेमडेसिविर दी उनका हाॅस्पिटल से डिस्चार्ज 11 दिन मे हो गया और जिनको रेमडेसिविर नही दी उनका हास्पिटल से डिस्चार्ज 18 दिन मे हुआ। जिसके निष्कर्ष में पाया गया कि रेमडेसिविर गंभीर कोविड मरीजों के हाॅस्पिटल मे भर्ती समय को कम करने मे उपयोगी है।

क्या है दोनों ट्रायल में अंतर
डाॅ. कुमरावत ने बताया कि दुसरी और तीसरी फेज की ट्रायल में तीन ग्रुप बनाये। पहले ग्रुप को रेमडेसिविर पांच दिन दी, दुसरे ग्रुप को रेमडेसिविर दस दिन दी और तीसरे ग्रुप को रेमडेसिविर नही दी। जिसके बाद जो निष्कर्ष निकला वह काफी चैकाने वाला था कोविड के मरीजों मे रेमडेसिविर का पांच दिन का इलाज प्रभावी है, रेमडेसिविर को दस दिन तक देने की आवश्यकता नही है। सेफ्टी और प्रभाव की दृष्टि से भी रेमडेसिविर का पांच दिन का ट्रीटमेंट महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अमेरिका की ट्रायल ने बताया कि रेमडेसिविर कोविड के गंभीर मरीजों मे पांच दिन के इलाज से हास्पिटल मे भर्ती समय को कम करने मे प्रभावी है। अमेरिका ने रेमडेसिविर का कोविड के गंभीर मरीजों के भर्ती समय पर प्रभाव जानने के लिये ट्रायल की इसके विपरीत डब्ल्यूएचओ ने रेमडेसिविर का कोविड के मरीजों की मृत्यु दर पर प्रभाव जानने के लिए ट्रायल की। यही दोनो ट्रायल का बेसिक अंतर है।

डाॅ. कुमरावत ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने अपनी ट्रायल में यह पाया कि रेमडेसिविर (और एचसीक्यू, लोपिनावीर-रिटोनावीर, इंटरफेरॉन) कोविड के मरीजों की मृत्यु दर पर कोई प्रभाव नही डालती है। ये दवाएं कोविड मरीजों की मृत्यु कम करने अप्रभावी और अनुपयोगी है।
कोविड मरीजों की मृत्यु का कारण वायरस न होकर एम्युन सिस्टम डिसरेग्युलेशन ज्यादा
डाॅ. कुमरावत ने कहा कि उनका मत यह है कि कोविड मरीजों मे मृत्यु का कारण वाइरस न होकर इम्युन सिस्टम डिसरेग्युलेशन होता है। अतः कोविड में मृत्यु रोकने मे रेमडेसिविर का कोई महत्वपूर्ण रोल नही है। मृत्यु रोकने मे स्टीरॉयड, आईएल-6 इंहीबिटर, सीसीआर-5 एंटागोनिस्ट, वीआईपी, एगोनिस्ट का महत्वपूर्ण रोल है। यानि यह कह सकते है कि डब्ल्यूएचओ की ट्रायल ही गलत डायरेक्शन में थी। डब्ल्यूएचओ ने अपने इस ट्रायल मे एचसीक्यू का भी हाई डोज (800एमजी पहला डोज, फिर 400 एमजी सुबह शाम) उपयोग किया। इससे भी संदेह होता है कि डब्ल्यूएचओ की मंशा एचसीक्यू को रिजेक्ट करने की रही। फिलहाल देखना यह है कि भारत सरकार अपनी गाइडलाइंस में क्या परिवर्तन करती है, क्या वो रेमडेसिविर और एचसीक्यू को कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में लेगी। हालांकि अभी तो आईसीएमआर ने डब्ल्यूएचओ की ट्रायल को सहमति दी है, क्योंकि भारत सरकार ने इस ट्रायल में भाग भी लिया था। उधर डब्ल्यूएचओ कोविड की शुरुआत से ही संदिग्ध रहा है और अपनी विश्वनीयता खो चुका है।
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