Nagda(mpnews24)। भारतीय जनता पार्टी नित केन्द्र सरकार किसाानों की मांगों को शीघ्र संसद का सत्र बुलाकर पुरा करे तथा सरकार द्वारा जबरन थोपे गए किसान विरोधी तीनों कानूनों को वापस ले लेना चाहिए। क्योंकि उक्त कानूनों को किसानों से बिना चर्चा किए कार्पोरेट जगत से समझौता लागू कर दिया गया तथा पूंजीपतियों से करोडों का चंदा लेकर अन्नदाता माॅं उसकी भूमि को पूंजीपतियों के यहाॅे गिरवी रख किसानों के बच्चों के गले पर छुरी चलाने का काम सरकार कर रही है।
सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के पूर्व संचालक एवं श्रमिक नेता कैलाश रघुवंशी ने जारी प्रेस बयान में कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा नवीन कृषि कानून बनाकर बडे घरानों के हाथों में पुरा देश सौंपने की तैयारी कर ली है। पूर्व से ही यह बडे पूंजीपति बडे-बडे माॅल खोलकर छोटे व्यापारियों के धंधों को खत्म करने पर उतारू हैं वहीं अब कृषि मण्डीयों को समाप्त कर देश के अन्नदाता के गलों पर छूरी चलाने का काम किया जा रहा है। श्री रघुवंशी ने कहा कि आज देश के नागरिक बडे-बडे माॅल में जाकर अपनी आवश्यकता की सामग्री क्रय कर रहे हैं जबकि छोटे व्यापारी हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं। श्री रघुवंशी ने कहा कि अभी से किसानों की उपज को कम दामों पर व्यापारी खरीद रहे हैं जबकि किसान सिर्फ न्यूनतम समर्थन मुल्य को आवश्यक किए जाने की मांग ही तो कर रहे है।
रघुवंशी ने कहा कि आज व्यापारियों द्वारा 2500 रूपये क्विंटल में सोयाबीन की खरीदी की जा रही है जबकि इसका समर्थन मूल्य 3800 से 4000 रूपये है। छोटे किसान को अगली फसल बोने के लिये मजबुरी में इतने कम दाम पर अपनी उपज को बेचना पड रहा है। यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य को आवश्यक सरकार कर देगी तो किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा कानून बनाते ही पंजाब, हरियाणा एवं अन्य प्रदेशों के किसानों ने इसका विरोध प्रारंभ कर दिया है, लेकिन किसानों की वाजीब मांगों को पुरा करने के लिए केन्द्र सरकार के मंत्री राजी नहीं दिखाई दे रहे उलट किसानों पर ही उल-जलुल आरोप मढने से भी बाज नहीं आ रहे है। साथ ही देश के अन्नदाता पर लाठीयाॅं बरसाई जा रही, वाॅटर केनन से धकेला जा रहा है, इतना ही नहीं किसानों को आतंकवादी, असामाजिक तत्व, गुन्डे आदि कहने से भी सरकार के मंत्री बाज नहीं आ रहे है। बावजुद इसके देश का अन्नदाता अपनी मांगों पर अडा हुआ है।
श्री रघुवंशी ने कहा कि आज देश के नागरिकों, किसानों, बेरोजगारों की आवाज को दबाने के लिए धार्मिक भावनाओं को भडका कर देश में अशांति फैलाने का कार्य सरकारों द्वारा किया जा रहा है जो संविधान के विपरित होकर देशहित में बिलकुल भी नहीं है। सरकार को चाहिए कि कृषि कानूनों को वापस लेकर अन्नदाता की वाजिब मांगों को मानना चाहिए।
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