नागदा - लोकधन का उपयोग मूलभूत सुविधाओं पर हो, प्रवेश द्वार मामले में न्यायालय ने दिया महत्वपूर्ण आदेश नगर पालिका द्वारा 76 लाख रूपये की लागत से बनाये जा रहे है स्वागत द्वार



Nagda(mpnews24)।  अतिरिक्त अपर एवं सत्र न्यायाधीश अभिषेक सक्सेना ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि लोकधन का उपयोग जनता को मूलभूत सुविधाऐं प्रदान किए जाने में होना चाहिए। विद्वान न्यायाधीश ने उनके न्यायालय में प्रस्तुत एक पुनरीक्षण याचिका पर उक्त फैसला दिया है। पुनरीक्षण याचिका सामाजिक कार्यकर्ता अभय चैपडा ने न्यायालय में प्रस्तुत की थी।

क्या है मामला
याचिकाकर्ता श्री चैपडा से प्राप्त जानकारी के अनुसार इंगोरिया रोड़ पर नगर पालिका द्वारा बनाऐ जा रहे प्रवेश द्वार की अनुमति को न्यायालय द्वारा प्रत्याकृत (निरस्त) किये जाने से नगर पालिका परिषद के द्वारा बनाये जा रहे उक्त प्रवेश द्वार का मामला खटाई में पड़ गया है और 76 लाख की लागत से बने प्रवेश द्वार को अवैध करार देने से नगर पालिका को अब उक्त प्रवेश द्वार को हटाना पड़ेगा। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि प्रवेश द्वार का निर्माण लाखों रूपये की निधि से किया जा रहा हैं। नगर पालिका द्वारा आम जनता से सम्पत्तिकर, जलकर एवं अन्य कर अधिरोपित कर राजस्व संग्रहण किया जाता है, जो कि एक लोकधन है, उक्त धनराशि का उपयोग लोकोपयोगी कार्य में ही किया जाना उचित है। विद्वान न्यायाधीष ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि वर्तमान में नागदा शहर में यातायात के दबाव को दृष्टिगत रखते हुए सड़को की चैड़ाई कम है। मुख्य बाजार की सड़को के मध्य में डिवाइडर निर्मित किये जाने की आवश्यकता है, नगर में नालियों के निर्माण की तथा पूर्व में निर्मित नालियों के ढके जाने के अलावा नगर की सफाई व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था आदि के सुदृढीकरण की आवश्यकता हैं। उपरोक्य कार्यो की प्राथमिकता प्रवेश द्वार की अपेक्षा अधिक हैं। नगर पालिका द्वारा मुलभूत आधार कार्यो के स्थान पर 76 लाख रू. की बड़ी धनराशि का उपयोग प्रवेश द्वार निर्माण में किया जाना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है। इसके बावजूद भी अनुविभागीय अधिकारी द्वारा उक्त आदेश के माध्यम से प्रवेश द्वार के निर्माण की अनुमति दी गई जो कि औचित्यहीन है।

राज्य शासन को मार्ग में अवरोध उत्पन्न करने का अधिकार नहीं
विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा कि वैधता के दृष्टिकोण से विचार करने पर यह प्रकट होता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एसएलपी(सिविल) क्रं. 8519/2006 में पारित अंतरिम आदेश 18 जनवरी 2013 के द्वारा यह आदेशित किया गया है कि राज्य सरकार किसी भी सार्वजनिक मार्ग, फुटपाथ, साईडवे या अन्य लोकोपयोगी स्थान में किसी भी निर्माण की अनुमति प्रदान नहीं करेगी। म.प्र. सड़क विकास निगम के पत्र द्वारा भी मुख्य नगर पालिका अधिकारी नगर पालिका नागदा को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसरण में निर्माण करने बाबत् निर्देश किये गये थे।

अधिकारियों ने की न्यायालय के आदेशों की अवहेलना
एडीजे न्यायालय के द्वारा आदेश 7 फरवरी 2020 के माध्यम से अनुविभागीय अधिकारी को निर्देशित किया गया था कि निर्माणाधीन प्रवेश द्वार के स्थल का स्वयं या अधीनस्थ से पुनरीक्षण करवाकर उक्त निर्माण से आम जनता को होने वाली बाधा या न्यूसेंस का आकलन करेंगे। अनुविभागीय अधिकारी के द्वारा तहसीलदार से स्थल निरीक्षण करवाया गया। तहसीलदार द्वारा स्थल निरीक्षण कर यह बताया गया कि प्रवेश द्वार निर्माण से वाहनों के आवागमन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हो रही है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेखित किया गया कि प्रवेश द्वार में कोई बाधा या न्यूसेंस उत्पन्न ना होकर स्थल का सौंदर्यीकरण हो रहा है। तहसीलदार के द्वारा निर्माणाधीन स्थल के छायाचित्र भी संलग्न किये गये थे। लेकिन न्यायालय ने पाया कि छायाचित्रो के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जिस मार्ग के दोनो ओर प्रवेश द्वार के पिल्लर स्थापित किये जा रहे है उक्त मार्ग के दोनो ओर पैदल चलने वाले राहगीरो के फुटपाथ निर्मित हैं। प्रवेश द्वार के पिल्लर स्थापित होने से फुटपाथ पर चलने वालो के लिये मार्ग अवरूद्ध हो जायेगा। ऐसी अवस्था में पैदल चलने वालो को फुटपाथ से हटकर सड़क पर चलने की आवश्यकता होगी। प्रवेश द्वार के निर्माण से आम जनता के फुटपाथ में अवरोध उत्पन्न हो जायेगा। सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त वर्णित आदेश में फुटपाथ पर निर्माण कार्य को प्रतिबंधित किया गया हैं। ऐसे में प्रवेश द्वार का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त वर्णित आदेश के अनुसार अनुमति योग्य नहीं है और विधिक दृष्टिकोण से भी सही नहीं है।

याचिकाकर्ता को नहीं दिया साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर
न्यायालय में अपने निर्णय में यह भी बताया कि पुनरीक्षणकर्ता को साक्ष्य प्रस्तुति का अवसर नहीं दिया गया। पुनरीक्षणकर्ता ने साक्ष्य आहूत करने का आवेदन प्रस्तुत किया था। जिसका भी कोई निराकरण अनुविभागीय अधिकारी द्वारा नहीं किया गया। न्यायालय के 7 फरवरी 2020 के आदेश में यह निर्देशित किया गया था कि पुनरीक्षणकर्ता को साक्ष्य प्रस्तुति का अवसर प्रदान किया जावे। अनुविभागीय अधिकारी के द्वारा पुनरीक्षणकर्ता के साक्ष्यो को बुलाने के आवेदन पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया। आवेदन को न तो निरस्त किया न ही स्वीकार किया गया। ऐसे में शुद्धता के दृष्टिकोण से भी अनुविभागीय अधिकारी के निर्णय को सही नहीं पाया गया।

पूर्व परिषद के निर्णय अनुसार करोडों की लागत से नपा बना रही प्रवेश द्वार
ज्ञातव्य है कि नगर पालिका नागदा द्वारा लगभग 2 करोड की लागत से इंगोरिया रोड, खाचरौद रोड एवं महिदपुर रोड़ पर तीन स्वागत द्वार लगाने का निर्णय लिया था। सामाजिक कार्यकर्ता चोपडा ने इसका विरोध करते हुए एसडीओ कोर्ट में दण्ड प्रक्रिया संहित की धारा 133 के अन्तर्गत आवेदन प्रस्तुत किया था। लेकिन एसडीएम द्वारा नगर पालिका के पक्ष में निर्णय देते हुए स्वागत द्वार लगाने की अनुमति दे दी थी जिसकी पुनरीक्षण अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश को किया गया था जिसमें एसडीएम कि निर्णय को निरस्त कर दिया गया है।
Ετικέτες

Post a Comment

[blogger]

MKRdezign

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget