और नमाज कायम रखो और जकात दो
इस्लाम मजहब में भी जकात की बड़ी अहमियत है। कुरआने-पाक के पहले पारे (प्रथम अध्याय) अलिफ-लाम-मीम की सूरह अल बकरह की आयत नंबर तिरालीस (आयत-43) में अल्लाह का इरशाद (आदेश) है और नमाज कायम रखो और जकात दो और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ (दोनों हाथ घुटनों पर रखकर, सिर झुकाए हुए अल्लाह की बढ़ाई-महिमा का स्मरण करना) करो।
जकात, दोस्ती का दस्तावेज तो है ही रोजे का जेवर भी है। जकात का जेवर रोजे की जैब-ओ-जीनत (गौरव-गरिमा) बढ़ाता है। जकात में दिखावा नहीं होना चाहिए। जकात का दिखावा, दिखावे की जकात बन जाएगा। दिखावा (आडंबर) शैतानियत का निशान है, इंसानियत की पहचान नहीं।
रोजा रखते हुए शख्स को बुरी बात कहने से बचना चाहिए
रोजा पाकीजगी का परचम और इंसानियत का हमदम है। इसलिए इंसानियत भी। रूहानियत की ताकत है रोजा, रोजे की ताकत है जकात। हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फर्माया रोजा रखते हुए शख्स को बुरी बात कहने से बचना चाहिए, यह भी जकात है।
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