मगफिरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) का खास सरोकार है। रमजान खुशबुओं का खजाना है। इबादत, परहेजगारी का आस्ताना है। बारहवां रोजा ईमान के इत्र में मगफिरत की महक है।
यानी ग्यारहवें रोजे की फजीलत के बयान में तफसील दी गई है कि अल्लाह से गिड़गिड़ाकर बंदा जब अपने गुनाहों की माफी माँगता हैं और बुराइयों से बचने के लिए गुजारिश और दुआ करता है तो यह आखिरत के एकाउंट में मगफिरत की क्रेडिट है।
पवित्र कुरआन में मगफिरत के लिए जिस तक्वा (संयम, सत्कर्म, ईश्वरीय आज्ञापालन) का बार-बार जिक्र किया गया है, सब्र और सदाकत के साथ रखा गया रोजा उस तक्वे का एक जुज (तत्व, घटक) है।
मगफिरत (मोक्ष) के लिए कुरआने-पाक की सूरह आले-इमरान की आयत नंबर एक सौ तिरानवें (आयत नंबर-193) में जिक्र हैं ऐ परवरदिगार! हमारे गुनाह माफ फरमा! हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर! हमको दुनिया से नेक बंदों के साथ उठा।
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