नागदा - जिसने त्याग किया वही संसार में तीरा है - चन्द्रयंश विजयजी



Nagda(mpnews24)।  पौषधशाला मे चातुर्मास के दौरान विराजित सुप्रसिद्ध जैनसंत द्वारा चन्द्रभान उदयभान चरित्र एवं उत्तरायण सुत्र का वाचन करते हुए गुरूवार को सैकड़ो श्रद्धालुओं के बीच श्री पार्श्व प्रधान पाठशाला भवन मे धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि चंद्रयशविजयजी एवं जिनभद्रविजयजी ने प्रवचन में कहा कि राग जैसा रोग नही, द्वेष जैसा दुश्मन नही। हमारा दुनिया में कोई दुश्मन नही। द्वेष आपका दुश्मन है। मोह जैसी अज्ञानता नही। जिसके जीवन में मोह जीवित है, उसमें अज्ञानता है। जहाँ मोह है वहाँ सूतक है। मन्दिर को छोड़कर बच्चे में मोह वहाँ सूतक। व्यक्ति की मृत्यु पर मोह होता, वहाँ सूतक है। प्रभु को छोड़कर मोह में अन्य कहीं भटकना सूतक यानी अज्ञानता है। जिनको जाना था वह गये लेकिन उसके पिछे प्रभु भक्ति और धर्म नहीं छोड़ना चाहिये। उन्होंने कहा कि जहाँ विज्ञान खत्म होता है वहा धर्म शुरू होता है। तपस्या करने वाले ने चिकित्सीय मान्यताएँ धूमिल कर दी है।

गुरूदेव की वासक्षेप की भूमिका तपस्या में होगी महत्वपूर्ण-
पोषधशाला में गुरूवार को सिद्धीतप में कलश भराये गये, रक्षा पोटली दी गई, वासक्षेप दिया गया तथा इस दौरान जाप कराये जायेंगे फिर कलश घर पर ले जायेंगे। गुरूदेव के वासक्षेप से घर पर 9 नवकार और 9 ओसग्रम गिनकर डालना है। सिद्धितप में क्रम से 1 उपवास और पारणा, 2 उपवास और पारणा, 3 उपवास और पारणा, 4 उपवास और पारणा, 5 उपवास और पारणा, 6 उपवास और पारणा, 7 उपवास और पारणा, 8 उपवास और पारणा। इस तरह कुल 36 उपवास के कठोर तप की तपस्या है।

कलश भरवाकर सामुहिक धारणा की गई
सिद्धितप के 81 तपस्वी प.पू. गुरूदेव के सानिध्य में श्रीसंघ के साथ पार्श्वप्रधान पाठशाला से जुलूस के रूप में गौशाला परिसर पहुंचे जहां पर सभी आराधको का सामूहिक धारणा(भोजन) का आयोजन कराया गया। इस आयोजन के लाभार्थी कमलेशकुमार दर्शनकुमार नागदा परिवार थे एवं सभी आराधको को आराधना करने हेतु एक सामग्री की किट प्रदान की गई जिसके लाभार्थी मन्नालाल अनिलकुमार अल्पेशकुमार अतिशकुमार नागदा परिवार थे।
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