नागदा - केंसर की गठान एक जन्म को मारती है जबकि कषाय का गठान जन्मों जन्म मारती है-मुनि चन्द्रयशविजयजी म.सा.



Nagda(mpnews24) - चातुर्मास के दौरान प.पू. चन्द्रयशविजयजी म.सा. एवं जिनभद्रविजयजी म.सा. की निश्रा में सिद्धी तप के लाभार्थी के साथ 101 तपस्वी मंगलवार प्रातः 7.30 बजे चन्द्रप्रभु मंदिर दर्शन करते हुए अपने दुसरे पारणे करने के लिये गोपाल गौशाला पर पहुंचे।

तत्पश्चात मुनिवर ने धर्मसभा में कहा कि केंसर की गठान एक जन्म को ही मारती है जबकि कषाय की गठान जन्मों जन्म तक मारती है। द्वार पर आये याचक को अपनी यथाशक्ति दान देना चाहिये। जो हमको अच्छा दिखे फिर भी ऐसे याचक को दान अवश्य देना चाहिये। पूर्व जन्म मे नहीं देने के कारण भिखारी बनकर आपके घर वह भीख मांगने आ रहा है पर वह भीख मांगने के साथ सीख भी दे जाता है। एक व्यक्ति ने भिखारी को भीख की जगह ठोकर दी। गरीब ने अपनी दुआ देते हुए कहा कि भगवान आपको दस गुना दे। गरीब का भाव तो सबके प्रति वही है लेकिन देने वाले का भाव बदला तो उसको बद्दुआ लगी। पानी के समान खींची गयी रेखा के समान क्रोध रुपी कषाय होता है, जो आकर तुरन्त समाप्त हो जाता है। दूसरे नम्बर का कषाय रेत के अन्दर खींची गयी रेखा के समान जो हवा के साथ उड़ जाती है, मतलब थोड़े समय मे क्रोध समाप्त हो जाता है। तीसरे प्रकार का कषाय कीचड़ के अन्दर देर तक रहने वाली रेखा के समान जो थोड़े ंज्यादा समय टिकने वाला होता है। लेकिन चौथे नम्बर का कषाय आर. सी. सी. के अन्दर खींची गई रेखा के समान है जो कभी मिटती नहीं और भव-भव तक इसके दुष्परिणाम भुगतने होते है भगवान कहते है कि ऐसा कषाय कभी रखना नहीं चाहिये। कषाय की प्रवृति अल्प समय की होना चाहिये।


मुनिराज ने आगे कहा कि लम्बे समय के क्रोध एवं बैर से सर्प योनि प्राप्त होती है और हम इस जीवन को भवसागर पार करने के लिये आये है न कि त्रियन्च योनी या नर्क मे जाने के लिये। तपस्या जो करता है उसे ही लाभ मिलता है। पति तपस्या के दौरान पत्नि सेवा करता है तो भी तपस्या का लाभ पत्नी को ही मिलता है, पति को नही। सामायिक, रात्रि भोजन त्याग, तपस्या, पूजा जैसे कार्य इस जीवन मे हीरा खरीदने के समान है लेकिन हम चाट खरीदने के समान कार्यो को करने, खाने पीने, आमोद प्रमोद में अपना हीरे जैसा जीवन व्यर्थ करते है।

मुनि जिनभद्रविजयजी म.सा. ने कहा कि कोई द्रोणाचार्य हमारी योग्यता निर्धारित नहीं कर सकता, एकलव्य स्वयं के पोरूषार्थ से पारंगत हुआ। द्रोणाचार्य के आदेश पर अर्जुन तीर चलाता, उसके पहले ही कुत्ते का तीर से मुँह बन्द कर दिया। अर्जुन गुरु पर किसी अन्य को विद्या देने की शंका कर रहे थे इतने में एकलव्य ने आकर बताया कि उसने स्वयं द्रोणाचार्य की मूर्ति बताकर तीर की विद्या सीखी और दुर लेजाकर मुर्ति बताई। अर्जुन के प्रभाव मे अंगूठा मांगने के बाद गुरु से निष्ठा में बिना अंगूठे स़े तीर चलाने मे पारंगत हुए। दान रूचि अल्प कषाय और मध्यम गुण यह तीन गुण मनुष्य को उच्चता पर पहुंचाने के लिये है। भगवान कहते है कि आपका सम्पूर्ण जीवन चिन्तामणी रत्न के समान है जिसे पत्थर के रुप में पक्षी के को भगाने के लिये उपयोग कर व्यर्थ मे नही गंवाये।

आचार्य श्री ऋषभचन्द्रसुरिश्वरजी म.सा. की द्वितीय मासिक पुण्योत्सव मनाया गया-
मोहनखेड़ा तीर्थ के विकास प्रेरक गच्छाधिपति प.पू. ऋषभचन्द्रसुरीश्वरजी म.सा. की द्वितीय मासिक पुण्योत्सव लक्ष्मीबाई मार्ग स्थित पार्श्व प्रधान पाठशाला में मनाई गई। इस अवसर पर सर्वप्रथम गुणानुवाद का आयोजन किया गया। इसके पश्चात् आचार्यश्री के चित्र पर माल्यार्पण एवं वासक्षेप द्वारा पूजन किया गया तथा दोपहर 2 बजे नवकार महामंत्र के जाप व सामुहिक सामयिक का आयोजन विशाल जनमैदिनी द्वारा किया गया। इस अवसर पर गोपाल गौशाला में आयोजित बियासने का लाभ श्रीमान् प्रकाशचन्द्रजी हस्तीमलजी कोठारी परिवार एवं सायंकाल के बियासने का लाभ श्रीमान् केसरीमलजी जितेन्द्रजी तरवेचा परिवार ने लिया।

इस मौके पर श्रीसंघ अध्यक्ष हेमन्तजी कांकरिया, सचिव मनीष सालेचा व्होरा, चातुर्मास समिति अध्यक्ष रितेश नागदा, सचिव राजेश गेलड़ा, संघ कोषाध्यक्ष हर्षित नागदा, समिति उपाध्यक्ष सोनव वागरेचा, ललित बोहरा, समिति कोषाध्यक्ष निलेश चौधरी, भंवरलाल बोहरा, राजमलजी ओरा, सुनील कोठारी, राजेन्द्र कोचर, अभय चोपडा, सुनील वागरेचा, सुनील कांकरिया, संजय वागरेचा, कमलेश नागदा, ऋषभ नागदा, अभय बोहरा, मुकेश बोहरा, मनोज वागरेचा, अंकित ओरा, राकेश ओरा(प्रेमभाव), पुखराज ओरा, भूपेन्द्र गेलड़ा, निलेश हिंगड, प्रदीप शाह सहित श्रीसंघ एवं चातुर्मास समिति सदस्य उपस्थित थे।

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