नागदा जं-भगवान के पास यह मत बोलो कि मेरे पास मुसीबत है लेकिन मुसीबत को जाकर अवश्य कह दो मेरे पास भगवान है -मुनिराज चंद्रयशविजयजी

MP NEWS24- चातुर्मास हेतु विराजित मुनिराज चंद्रयशविजयजी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान के पास यह मत बोलो कि मेरे पास मुसीबत है लेकिन मुसीबत को जाकर अवश्य कह दो मेरे पास भगवान है। तो आपकी मुसीबते खत्म हो जायेगी। महाभारत की पात्र कुन्ती कहती है कि भगवान मुझे दुःख दो। भगवान के स्मरण में आँसू आये नयी बात नही। विस्मरण में आसू आना चाहिये। अगर भगवान को सुख मे याद नहीं करते तो दुख मे याद करना स्वार्थ है। भगवान का व्यवहार समान रहता है। नवकार महामंत्र विशाल है। प्रवचन श्रवण की तीन श्रेणीयाँ है, पहला मनोरंजन, दूसरा मनोमंथन जिसमे विचार किया जाता है तीसरा है मनोमंजन। इसमें जीवन के अन्दर प्रवचन उतारना है।

भगवान ने बताया इतना धर्म हम नहीं करते। हम जितना चाहते उतना ही करते है। नवकार महामंत्र मे नवनीधी है और अष्टसिद्धि है। अणिमा सिद्धि का अर्थ है कि इसके प्रभाव से छोटा रुप हो जाता है। महिमा सिद्धि से विशाल स्वरूप बनाया जा सकता है। गरिमा सिद्धि के अन्दर वजन बड़ाया सकता है। लधिमा सिद्धि मे वजन बहुत कम किया जा सकता है। पांचवी प्राप्याम सिद्धि में पाताल के अन्दर जाया जा सकता आकाश मे उड़ा जा सकता है और पानी पर चला जा सकता है। कोई आराधक आत्मा तपस्या करता है तो उसका मनोबल बढ़ाना चाहिये। हमें विपरित दिशा मे नहीं चलना चारिये। संसार के क्षेत्र मे कहीं टेड़े-मेड़े चलो कोई कुछ नही बोलेगा। लेकिन धर्म एवं देवगुरू की शरण में सीधा चलना चाहिये। नहीं तो मुक्ति नहीं हो सकती है। तपस्या के लिये समर्पण, संकल्प एवं सत्व तीन चीजे आवश्यक है।

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