MP NEWS24 जनता को अपने अधिकारों से लड़ने के लिए मिले सूचना अधिकार कानून में इन दिनों यह देखने में आ रहा हैकि इस कानून को रोंदने एवं कुचलने का सिलसिला जारी है। लेकिन देश में ऐसे भी उर्जावान लोग है, जो निरंतर नवाचार एवं जीवटता से सूचना अधिकार एक्ट को मजबूत और सशक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। मप्र के रीवा जिले के निवासी शिवानंद द्विवेदी ने अपने पुरूषार्थ से इस कानून को बचाने तथा मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक मिशन खड़ा किया है। शिवानंद की टीम के किरदार
इस मिशन में देश के कोने-कोने से उन चुनिंदा लोगों को जोड़ा गया जो सूचना अधिकार क्षेत्र में सक्रिय है। इस मिशन में देश के जाने-माने अधिवक्ता, सूचना आयुक्त , पूर्व सूचना आयुक्त, पत्रकार, लेखक एवं चितंक हिस्सा बने हुए हैें। इन पक्तियों के लेखक का शोभाग्य हैकि इस मिशन में निरंतर प्रतिभागिता जारी है। रविवार को हुए एक अनूठे राष्ट्रीय वेबिनार में इस लेखक को एक पत्रकार के किरदार में बड़ी खबर पकडऩे का अवसर मिला है। मामला यह हैकि इन दिनों नौकरशाह की लापरवाही से सूचनाओं को प्रकटीकरण करने में अफसर अथवा सूचना अधिकार के व्यवस्था के अभिन्न अंग लोकसूचना अधिकारी जान बूझकर बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। जानकारियां नहीं दी जाती है या फिर सूचनाओं के प्रकटीकरण में जनता को गुमराह किया जा रहा है। कभी किसी धारा को ढाल बनाकर कर उसकी गलत व्याख्या कर जनता को अपने अधिकारों से वंचित करने का प्रयास जारी है। लेकिन अब इन लापरवाह अफसरों के खिलाफ एफ आई आर का प्रयोग शुरू हुआ है।
आयोग में पत्रकार प्रष्ठभूमि
इन दिनों में सूचना अधिकार व्यवस्था में लोकसूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष इंसाफ नहीं मिलने पर लोग न्याय के लिए सूचना आयोग तक पहुंच तो रहे हैं, लेकि न अधिकांश मामलों में निराश हाथ लग रही है। सूचना आयोग में आयुक्तों की भर्ती में अफसर कोटे का बोलबाला है। यह अलग बात हैकि इस भर्ती में पत्रकार कोटे से जो लोग आयुक्त बने हैं, उन्होंने इतिहास रचा है। मप्र में पत्रकार से आयुक्त बने श्री राहुलसिंह ने इन दिनों इस कानून को मजबूत बनाकर सूचना अधिकार के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी है। इसी प्रकार से जनसत्ता, नवभारत टाईम्स जैसे अखबार में लेखनी को मुखर करने के बाद सूचना आयुक्त बने श्री आत्मदीपजी ने भी अपने सेवाकाल में कई नवाचार किए हैें। इसी प्रकार से केंद्रीय सूचना आयोग में श्री शैलेष गांधीजी ने कई अनूठे फैसलों से जनता को राहत दी है। इन दिनों सेवानिवृति के बाद ये लोग भी इस मिशन में प्रतिभागी है।
एक्ट में दंडात्मक की तीन धारा
समय पर जानकारी नहीं देने, कानून का उल्लघंन करने, जानबुझकर सूचनाओं के प्रकटीकरण में बाधा एवं अड़चन पैदा करने पर धारा 20.1 में अधिकतम 25 हजार का आर्थिक दंड का प्रावधान है। यह दंड देने की शक्तियां मात्र सूचना आयोग को प्राप्त है।
इसी प्रकार से धारा 20.2 में दोषी लोकसूचना अधिकारी पर सर्विस नियमों के तहत कार्यवाही करने की अनुशंसा आयोग कर सकता है। लेकिन इस पर अमल नहीं होता। इसी प्रकार से एक और धारा 19.8 बी में पीडि़त क्षतिपूर्ति पा सकता है। हालांकि इस धारा में दंडात्मक कार्यवाही के चुनिंदा प्रमाण सामने आए हैं।
जबकि प्रथम अपीलीय अधिकारी की लापरवाही के खिलाफ सूचना अधिकार कानून में कोइ दंडात्मक कार्यवाही के प्रावधान नहीं हैं। लेकिन अब सूचना अधिकार के क्षेत्र मेें कार्यरत लोगों के लिए अच्छी खबर हैकि इन बेपरवाह अफसरों के खिलाफ कानून एफआईआर भी दर्ज करा सकते हैं। आयोग के दरवाजे पर दस्तक देने के पहले दोषियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता में एफआईआर दर्ज कराई जाने का प्रयोग शुरू हुआ है। यह प्रयोग राजस्थान के एक अधिवक्ता ताराचंद जांगिड़ ने किया है। इन्होंने कई अधिकारियों को कानून के मकडज़ाल में उलझा कर एफआईआर दर्ज कराई है। एफआई आर के बाद अब इन अधिकारियों के खिलाफ अदालत में प्रकरण विचाराधीन है। ये अफसर अब न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं।
एक पत्रकार के किरदार में बड़ी खबर
रविवार को इस वेबिनार मेें इस लेखक को भी एक बार फिर सहभागिता करने का अवसर मिला। इस कार्यक्रम में राजस्थान के अधिवक्ता ताराचंद जांगिड़ ने अपना पॉवर पाइंट प्रजेंटेंशन दिया। साथ ही प्रमाण एवं प्रकरण नबंरों के साथ आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कराने की बात का खुलासा किया। बड़ी बात यह सामने आई कि सूचना अधिकार में जानबूझकर तथ्यों को छिपाने , आवेदक को गुमराह करनेे तथ्यों को नष्ट करने , सूचनाओं की कुट रचना करने पर अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर कराने मे आप सफल हुए है।
अधिवक्ता जागिड़ से सीधी बात
वेबिनार में प्रतिभागिता के बाद इन पक्तियों के लेखक ने राजस्थान के अधिवक्ता श्री जांगिड से इस विषय पर मोबाइल पर लंबी चर्चा की। उनका कहना थाकि सूचना अधिकार में अधिकारियों की लापरवाही से यह कानून कमजोर होता दिख रहा है। ऐसी स्थिति में उन्होंने सीधे ऐसे इन अधिकारियों को आइपीसी और सीपीसी की धाराओं में एफआईआर दर्ज कराने में सफलता हासिल की है। जिसमें कई पुलिस स्तर के ओहेदेदार अफसरों के नाम भी शुमार है। अपनी बात के पक्ष में अधिवक्ता ने एफआई के प्रकरण भी साझा किया।
कैसे कराए एफआईआर
यदि सूचना अधिकार में लोकसूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़े तथा प्रावधानों के तहत समय पर जानकारी उपलब्ध नहीं कराए तो ऐसे दोषियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान और दंड संहिता के तहत एफआईआर करवाई जा सकती है। स्वयं अभिभाषक के द्धारा इस प्रकार के मामलो में एफआईआर दर्ज कराने के आपने प्रमाण भी सांझा किए। अधिवक्ता ताराचंद के मुताबिक सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 7 की धारा 7.2 में 30 दिनों में धारा 6.1 के आवेदन का निपटारा करने का प्रावधान है। ऐसा नहीं करने पर लोकसूचना अधिकारी ने कानून की सीमाओं को तोड़ा है। एक्ट की धारा 7.8 का उल्लघंन करने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए तथा 167 के तहत एफआईआर कराई जा सकेगी। इसी प्रकार से आवेदक को झूठी जानकारी परोसने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए. 167. 420, 468 और 471 में लोकसूचना अधिकारी के खिलााफ एफ.आइ.आर. संभव है। बड़ी बात आपने प्रमाण के साथ साझा की कि प्रथम अपीलीय अधिकारी के निर्णय के बाद भी लोकसूचना अधिकारी ने धारा 6.1 के आवेदक को जानकारी मुहैया नहीं कराई तो ऐसी स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 175, 176, 188 और 420 में एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। लोकसूचना अधिकारी के द्धारा आवेदक से सूचना का शुल्क लेने के बाद भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराने पर आईपीसी की धारा 406 एवं 420 में एफ.आई.आर. कराई जाए। इन दिनों अधिकांश प्रकरणों में यह देखने में आ रहा हैकि प्रथम अपीलीय अधिकारी अधिनियम की धारा 19.6 के तहत प्रकरण का निपटारा अधिकतम 45 दिनों में नहीं कर रहे हैं। या फिर अपील पर घ्यान ही नहीं दिया जा रहा है। अभिभाषक जांगिड़ के मुताबिक ऐसी स्थिति में प्रथम अपीलीय अधिकारी के द्धारा अपील का निराकरण नहीं करने की स्थिति में प्रथम अपीलीय अधिकारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए तथा 188 के तहत एफआईआर दर्ज कराने के दरवाजे खुले हैं।
एफ.आई.आर. के प्रमाण
1 अधिवक्ता ताराचंद जांगिड़ ने इन पक्तियों के लेखक से मोबाइल पर चर्चा में खुलासा किया अभी तक वे 9 प्रकरणों में एफआईआर दर्ज करा चुके हैं। हालांकि कुछ मामलों में अफसर उच्च न्यायालय में चुनौती देने पहुंच गए हंै। फिर भी अधिकांश प्रकरण अब सफलता की सीढिय़ा लगातार चढ़ रहे हैं। एफआईआर के कुछ चुंनिदा प्रमाण इस प्रकार हैं-
1 अभिभाषक के प्रस्तुत प्रजेंटेशन केे अनुसार पुलिस थाना प्रागपुरा जिला जयपुर ग्रामीण में एफआईआर नंबर 397 / 2021 दर्ज हुई। इस प्रकरण में लोकसूचना अधिकारी ने वित्तीय अनियमितता के सूचना अधिकार में कुट रचित दस्तावेज उपलब्ध कराए। प्रकरण वर्तमान में अनुसंघान में है।
2 प्रकरण नबंर 774/ 2020 - इस प्रकरण में प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश के बाद भी लोकसूचना अधिकारी ने सूचनाओं को मुहैया नहीं कराया। ऐसे प्रकरण में पर्याप्त प्रमाण आवेदक के पास रहते हैं। इस स्वभाव के मामलों में अनुसंघान की आवश्यकता नहीं है। इसलिए इस मामले में सीधा परिवाद न्यायालय में दायर किया गया है। जोकि न्यायालय में विचाराधीन है।
3 एफआईआर नंबर 528 / 2015 पुलिस थाना टाउन जिला रेवारी हरियाणा- इस प्रकरण में पुलिस विभाग के अधिकारी ने सूचना अधिकार में मांगी गई सूचनाओं को छुपाया गया। जानबुझकर सूचना को प्रकटीकरण से रोका गया। नतीजन प्रकरण दर्ज हुआ। यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है। इस कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय सुचना आयुक्त श्री शैलेष गांधी ने इस प्रकार के नवाचार पर कहा कि- अब सूचना अधिकार में आईपीसी तथा सीपीसी के प्रयोग से सूचना अधिकार कानून मजबूत होगा।
- कैलाश सनोलिया
राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार मप्र शासन
संवाददाता हिंदुस्तान समाचार एजेंसी
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