MP NEWS24-नागदा शहर के एक युवक को बिरलाग्राम पुलिस द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के आधार पर की गई जिलाबदर की कार्रवाई को उच्च न्यायालय ने गलत मानते हुए जुर्माना आरोपीत करते हुए 5 हजार रूपये की राशि भी याचिकाकर्ता को प्रदान करने के निर्देश दिए है।उच्च न्यायालय द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण निर्णय
मामले में याचिकाकर्ता के मुताबिक भारतीय संविधान द्वारा किसी भी नागरिक को प्रदत्त उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में राज्य द्वारा मनमाने एवं गैर कानूनी तरीके से हस्तक्षेप करना कितना गंभीर हो सकता है, उसका उदाहरण हाल ही में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इन्दौर खण्डपीठ द्वारा बादीपुरा निवासी अजय मेवाती की याचिका में दिये गये फैसले से दर्शित होता है जिसमें उच्च न्यायालय ने न केवल जिला दण्डाधिकारी द्वारा जारी किये गये याचिकाकर्ता के जिला बदर आदेश को खारिज किया है बल्कि आदेश को मनमाना एवं कानूनी शक्ति का दुरूपयोग करार देते हुए याचिकाकर्ता को हर्जान के रूप में 5000 रूपये क राशि अदा करने के निर्देश राज्य शासन को दिये हैं।
जिला कलेक्टर ने जारी किए थे आदेश
याचिकाकर्ता ने बताया कि पुलिस थाना बिरलाग्राम नागदा द्वारा भेजे गये प्रतिवेदन के आधार पर पुलिस अधीक्षक उज्जैन ने अजय मेवाती को जिला बदर किये जाने की अनुशंसा की गई थी। पुलिस अधीक्षक की अनुशंसा के आधार पर जिला दण्डाधिकारी ने अजय के विरूद्ध एक वर्ष की अवधि के लिये उज्जैन एवं समवर्ती जिलोें की सीमाओं से बाहर चले जाने का आदेश जारी किया था। जिसकी पुष्टि बाद में कमिश्नर द्वारा भी की गई थी। जिला बदर के इस आदेश को याचिकाकर्ता अजय ने एडव्होकेट मकबूल मंसूरी के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विवेक रूसिया की अदालत में हुई। सुनवाई के दौरान याचिककर्ता की और से न्यायालय से यह गुहार की गई थी कि राजनैतिक दबाव के चलते उसके विरूद्ध अधिकारियों द्वारा अवैध एवं मनमाने रूप से जिला बदर की कार्यवाही करते हुए उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप किया गया है। जिसे गंभीरता से लेते हुए न्यायालय द्वारा यह पाया गया कि प्रकरण में याचिकाकर्ता को जिला बदर किये जाने के कोई वैधानिक आधार विद्यमान नहीं होने के बावजुद भी जिला दण्डाधिकारी ने बडे ही सामान्य तरीके से उसे जिला बदर कर दिया है। जो केवल अवैध एवं मनमाना ही नहीं है, अपितु कानूनी शक्ति के दुरूपयोग की श्रेणी में आता है व याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का भी हनन है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता को किया बहाल
याचिककर्ता के अनुसार न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि किसी भी नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित करने वाली कार्यवाही में संबंधित अधिकारी को अत्यंत ही सतर्कता एवं सावधानी से कार्यवाही करनी चाहिये। चुंकि इस मामले में राज्य के अधिकारियों को हर्जाने के रूप में 5000 रूपये की राशि अदा करने के निर्देश भी राज्य को दिये हैं और याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को फिर से बहाल कर दिया है।
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