नागदा--विवेकानंद निरंतर रूप से सभी के विचारों में विद्यमान हैं-शर्मा

MP NEWS24-राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा “विश्व विजेता सन्यासी स्वामी विवेकानंद जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व“ विषय पर आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित ब्रजकिशोर शर्मा (अध्यक्षराष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन) ने अपने उद्बोधन में कहा कि  महान लोग विचारों से ही लोगों के बीच जीवित रहते हैं । विवेकानंद जी कहते थे-अगर हम समुद्र के किनारे पर खड़े हों और लहरों को टकराते सुनें तो बहुत भारी आवाज सुनाई देती है पर यह एक लहर ही नहीं, बहुत छोटी-छोटी लहरों के टकराने की समग्र ध्वनि है। इसी तरह महान पुरुषों के छोटे-छोटे कार्य ऐसे होते हैं जो कि हमारे व्यक्तित्व पर छाप छोड़ जाते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. बालासाहेब तोरस्कर (महाराष्ट्र) ने की।  


संगोष्ठी की मुख्य वक्ता श्रीमती सुवर्णा जाधव (कार्यकारी अध्यक्ष पुणे महाराष्ट्र) ने कहा कि स्वमी विवेकानंदजी के विचार कालातीत हैं वे आज भी हम को प्रेरणा देते हैं। उनके शिष्यों को लिखे पत्रों का जिक्र करते हुए कहा कि इंसान को जीने के लिए हवा, पानी और खाना ही जरूरी नहीं है। उसके लिए स्वतंत्रता भी जरूरी है। उसे हर बात की आजादी होनी चाहिए। डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख(राष्ट्रीय मुख्य संयोजक पुणे) ने कहा कि विवेकानंद जी कहते थे कि हम वही बनते हैं जो हमारे विचार हमें बनाते हैं। श्री हरेराम बाजपेई (इंदौर) ने कहा कि उनके विचारों की अगर एक बूंद को भी हम अपना लेते हैं तो हमारा जीवन सार्थक हो जाएगा।

डॉ. प्रभु चौधरी(राष्ट्रीय महासचिव उज्जैन) ने सुंदर संस्कृत के श्लोक ‘‘असतो मां सद्गमय‘‘ से प्रस्तावना की शुरुआत की और कहा कि ’साहस’ शब्द से अधिक साहसी कर्म करने चाहिए। डॉ. अनुराधा सिंह ने कहा कि राजमाता जीजाऊ से माताओं को  सीखना चाहिए। डॉ.अनसूया अग्रवाल ने कहा कि वे इतने प्रखर इतने ऊर्जावान और इतने ओजस्वी थे कि निराश व्यक्ति भी अपने अंदर जीने की ललक पैदा कर सकता है। वे कहते थे कि जिस पल मैं हर व्यक्ति में ईश्वर देखता हूं उस पल मैं ईश्वर को देख लेता हूं। श्रीमती भुनेश्वरी जायसवाल ने कहा कि विवेकानंदजी को भारत की संस्कृति से बहुत लगाव था और उन्होंने विदेश में एक व्यक्ति से कहा था कि जब आपने अपनी मातृभाषा का सम्मान किया था तब मैंने अपनी मातृभाषा का सम्मान किया लेकिन जब आपने मेरी मातृभाषा का सम्मान किया तब मैंने आपकी मातृभाषा का सम्मान किया, उस घटना का वर्णन किया। डॉ.संध्या भोई  ने कहा कि विवेकानंद जी अभिनव भारत के निर्माण में सतत् प्रयत्नशील रहे। डॉ. जया आनंद ने कहा कि भक्ति मतलब  देशभक्ति चर्चा का विषय नहीं मैं इस पर विश्वास करता हूं ऐसा वे कहते थे। डॉ.सुरेखा मंत्री ने कहा कि विवेकानंदजी के हृदय में राष्ट्रवाद की भावना में विश्व निर्माण की भावना भी समाई है और उनका जीवन परिचय दिया।

संगोष्ठी की शुरुआत श्रीमती ज्योति तिवारी द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुई। आभार भुवनेश्वरी जायसवाल ने व्यक्त किया। संगोष्ठी का सफल एवं सुंदर संचालन डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद ने किया।

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