Nagda(mpnews24)। जाने-माने चिकित्सक एवं पूर्व ब्लाॅक मेडिकल आॅफिसर डाॅ. संजीव कुमरावत ने बताया कि कोविड-19 से एलर्जिंक एवं अस्थमा के मरीज सुरक्षित हैं। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कोरोना वायरस हमारे शरीर के सेल (कोशिका) में एसीई-2 (एंजियो टेनसिन कनवरटिंग एन्जाईम-2) के माध्यम से प्रवेश करता है।
एसीई-2 रिसेप्टर मुख्यतः किडनी, इन्टेस्टाइन (आंत), लग्स, हार्ट में पाये जाते हैं। श्वसन तंत्र में यह एसीई-2 रिसेप्टर नाक व गले की सतह रपिथेलियम, एयर बे, फेफडों में निमोसाइट टाईप-2 पाये जाते हैं। जितने ज्यादा एसीई-2 रिस्पेटर होंगे उतनी ज्यादा सम्भावना कोविड होने की होगी। हाई ब्लड पे्रशर, डायबिटिज, धुम्रपान और मोटापा इन में एसीई-2 रिस्पेटर की संख्या ज्यादा होती है। ऐसे में कोविड की सम्भावना भी ज्यादा होगी। इसलिये इनको हाई रिस्क फैक्टर कहते है।
डाॅ. कुमरावत ने बताया कि कोविड महामारी के शुरूआत में यूएस के सेन्ट्रल आॅफ डिजिज कंट्रोल ने एलर्जिक अस्थमा को भी कोविड के लिये हाईरिस्क माना था। एलर्जिक अस्थमा में मानव शरीर किसी भी एलर्जी के लिये हाइपर एक्टिव हो जाता है। यह एलर्जी धुल के कण, पराग कण, सुगंध (इत्र), जानवरों जैसे बिल्ली, कुत्ता, बकरी, खरगोश आदि के रेेशे से हो सकती है।
डाॅ. कुमरावत ने बताया कि यह एलर्जन जब शरीर में प्रवेश करते हैं तो इम्युन सिस्टम हाइपर एक्टिव हो जाता है और एंटीबाॅडी बनाता है। यह एंटीबाॅडी कई केमिकल निकालती है जिनको ल्युकोट्रिन कहते हैं। इन केमिकल के कारण एयर वे (श्वास नली) में सूजन आ जाती है, बहुत ज्यादा म्युकस निकलता है जिसके कारण श्वास नली संकरी हो जाती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, सकरी नली से हवा निकलती है तो घरघराहट की आवाज आती है।
सीडीसी यूएस का यह मानना था कि चुंकि अस्थमा में पहले ही श्वास नली संकरी हो जाती है और यदि इन मरीजों को कोविड हुआ है तो सांस लेने में दिक्कत और बढ जायेगी इसलिये एलर्जिक अस्थमा को कोविड-19 के लिये हाई रिस्क माना गया था। लेकिन यूएस की युनिवर्सीटी के डाॅ. डेनियल जे. जेक्सन विलियम और उनकी टीम ने चीन के कोविड मरीजों के डेटा का एनालिसिस किया तो उन्होंने पाया कि चीन में कोविड मरीजों एलर्जिक अस्थमा के मरीजों की संख्या बहुत कम है। यह उनको आश्चर्य की बात लगी तब उन्होंने अस्थमा के मरीज पर स्टडी की।
डाॅ. कुमरावत ने बताया कि यूएस में अपने प्रयोगों के आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जिन अस्थमा के मरीजों में मिडियम एवं हाई एक्टिविटी थी उमें एसीई-2 रिसेप्टर क संख्या कम पायी गयी। एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या कम पायी गयी। एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या कम होने का अर्थ है कोविड होने की सम्भावना कम होना। उन्होंने एक और प्रयोग किया उन्होंने ऐसे मरीजों का ग्रुप बनाया जिनको एलर्जी थी उन मरीजों को जिस वस्तु से एलर्जी थी उस वस्तु का एक्सपोजर किया तो उन्होंने पाया कि कि मात्र 8-48 घंटे में एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या बहुत कम हो गयी यानि कोविड के चांस कम हो गये तब उन्होंने निष्कर्ष दिया कि एलर्जिक अस्थमा में जिन मरीजों में हाइपर एक्टिवीटी रहती है उन मरीजों में एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या कम होती है, चुंकि एसीई-2 रिसेप्टर से ही कोरोना वाईटस सेल में इन्ट्री करता है। इसलिये एलर्जिक अस्थमा में मरीज कोविड से सुरक्षित रहते हैं।
डाॅ. कुमरावत ने कहा कि इसका यह अर्थ नहीं है कि एलर्जिक अस्थमा के मरीज लापरवाही करें उनको मास्क, सोशल डिस्टेंस और हाथ धोने की पुरी सावधानी बरतना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह स्टडी सिर्फ एलर्जिक अस्थमा के लिये हैं ऐसे अस्थमा जो कोल्ड, स्ट्रेस एस्पिरिन आदि से आते हैं वो कोविड के लिये हाईरिस्क हैं।
डाॅ. कुमरावत ने बताया कि यह एलर्जन जब शरीर में प्रवेश करते हैं तो इम्युन सिस्टम हाइपर एक्टिव हो जाता है और एंटीबाॅडी बनाता है। यह एंटीबाॅडी कई केमिकल निकालती है जिनको ल्युकोट्रिन कहते हैं। इन केमिकल के कारण एयर वे (श्वास नली) में सूजन आ जाती है, बहुत ज्यादा म्युकस निकलता है जिसके कारण श्वास नली संकरी हो जाती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, सकरी नली से हवा निकलती है तो घरघराहट की आवाज आती है।
सीडीसी यूएस का यह मानना था कि चुंकि अस्थमा में पहले ही श्वास नली संकरी हो जाती है और यदि इन मरीजों को कोविड हुआ है तो सांस लेने में दिक्कत और बढ जायेगी इसलिये एलर्जिक अस्थमा को कोविड-19 के लिये हाई रिस्क माना गया था। लेकिन यूएस की युनिवर्सीटी के डाॅ. डेनियल जे. जेक्सन विलियम और उनकी टीम ने चीन के कोविड मरीजों के डेटा का एनालिसिस किया तो उन्होंने पाया कि चीन में कोविड मरीजों एलर्जिक अस्थमा के मरीजों की संख्या बहुत कम है। यह उनको आश्चर्य की बात लगी तब उन्होंने अस्थमा के मरीज पर स्टडी की।
डाॅ. कुमरावत ने बताया कि यूएस में अपने प्रयोगों के आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जिन अस्थमा के मरीजों में मिडियम एवं हाई एक्टिविटी थी उमें एसीई-2 रिसेप्टर क संख्या कम पायी गयी। एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या कम पायी गयी। एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या कम होने का अर्थ है कोविड होने की सम्भावना कम होना। उन्होंने एक और प्रयोग किया उन्होंने ऐसे मरीजों का ग्रुप बनाया जिनको एलर्जी थी उन मरीजों को जिस वस्तु से एलर्जी थी उस वस्तु का एक्सपोजर किया तो उन्होंने पाया कि कि मात्र 8-48 घंटे में एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या बहुत कम हो गयी यानि कोविड के चांस कम हो गये तब उन्होंने निष्कर्ष दिया कि एलर्जिक अस्थमा में जिन मरीजों में हाइपर एक्टिवीटी रहती है उन मरीजों में एसीई-2 रिसेप्टर की संख्या कम होती है, चुंकि एसीई-2 रिसेप्टर से ही कोरोना वाईटस सेल में इन्ट्री करता है। इसलिये एलर्जिक अस्थमा में मरीज कोविड से सुरक्षित रहते हैं।
डाॅ. कुमरावत ने कहा कि इसका यह अर्थ नहीं है कि एलर्जिक अस्थमा के मरीज लापरवाही करें उनको मास्क, सोशल डिस्टेंस और हाथ धोने की पुरी सावधानी बरतना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह स्टडी सिर्फ एलर्जिक अस्थमा के लिये हैं ऐसे अस्थमा जो कोल्ड, स्ट्रेस एस्पिरिन आदि से आते हैं वो कोविड के लिये हाईरिस्क हैं।
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