विगत दो-तीन माह से जरूरत की वस्तुओं के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। कोरोना काल में कई लोगों की नौकरीयाॅं तक चली गई, वहीं वर्तमान में खाद्य सामग्री की दरों में जिस हिसाब से वृद्धी हुई है उतनी वृद्धि पहले कभी भी नहीं देखी गई। एक और संक्रमण से बचाव हेतु प्रोटीन युक्त दालोें के सेवन हेतु स्वास्थ्य विभाग द्वारा जोर दिया जा रहा है वहीं बाजार में दोलों के आसमान छुते भाव ने इसे गरीब की रसोई से काफी दूर कर दिया है। वहीं मेहमाननवाजी की शान कही जाने वाली चाय पत्ती एवं शक्कर के दाम भी आसमान छू रहे है। दिनों दिन बढ रही महगाई के इस दौर में न तो सत्ता में बैठे राजनेता कुछ बोलने के लिए तैयार है और ना ही विपक्ष में बैठे लोग। ऐसे में आम जनता महंगाई की चक्की में निरंतर पीस रही है। खाद्य सामग्री के साथ ही पेट्रोल 92 रूपये प्रतिलीटर, डीजल एवं रसोई गैस 755 रूपये के दामों ने भी महंगाई में अत्यधिक वृद्वि कर दी है।
आसमान छुती महंगाई ने बिगाड दिया परिवारों का बजट
हमारे प्रतिनिधि ने इस पुरे मामले में वर्तमान में हर परिवार में आवश्यक रूप से उपयोग में आने वाली खाद्य सामग्रीयों के भाव बाजार में तलाशे तो ज्यादातर खाद्य सामग्रीयों के भाव आसमान छुते नजर आऐ। अगस्त-सितम्बर माह में जिस तुवर दाल के भाव 90 से 95 रूपये किलो थे वह वर्तमान में 110-120 रूपये प्रतिकिलो की दर से बाजार में बीक रही है। वहीं उदल दाल 100-110 से 105-110 पर पहुच गई है, मूंग की दाल 100 से 110, चना से 65-70 रूपये प्रतिकिलो तथा खाद्य तेल खुला 135 रूपये प्रतिकिलो से ब्रान्डेड तेल 135 से 150 रूपये प्रतिकिलो की दर से बाजार में बीक रहा है। ऐसे में गरीब की रसोई का पुरा बजट ही बिगड गया है। यह तो कुछ सामग्री है जिनका उल्लेख हमारे द्वारा किया गया है महिने भर में लगने वाली खाद्यान्न सामग्री में ज्यादातर के दाम बढ चुके है। ऐसे में गरीब परिवारों के साथ-साथ मध्यमवर्गीय परिवारों का भी बजट अब गडबडाने लगा है।
अनलाॅक के बाद परेशानियों ने घेरा, महंगाई ने तोडी गरीबों की कमर
हमारे प्रतिनिधि से चर्चा में पटेल गली काॅलोनी निवासी गृहणी श्रीमती लक्ष्मीबाई ने बताया कि वर्तमान में महंगाई अत्यधिक बढ गई है। ऐसे में मध्यमवर्गीय परिवारों को घर चलाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड रहा है। कोरोना संक्रमण के खतरे चलते लाॅकडाउन एवं उसके बाद से ही काफी परेशानियों का दौर चल रहा है। वह स्वयं मेहनत मजदूरी कर अपना पेट पालती हैं, लेकिन वर्तमान समय में मजदूरी भी बहुत कम मिल रही है। ऐसे में घर चलाना काफी मुश्किल हो गया है। जरूरत की खाद्य सामग्री को खरीदने में भी उन्हें काफी परेशानियाॅं आ रही है।
शहर में छुट्टी मजदूरी करने वाले जगदीश बताते है कि बिमारी के खतरे के बावजुद वह मजदूरी पर जा रहे है, लेकिन जो कुछ भी रोज कमाते हैं उससे घर चलाना काफी मुश्किल हो गया है। पहले दाल-चावल खाकर ही दिन काट लिया करते थे लेकिन अब तो दाल भी बहुत महंगी हो गई है। ऐसे में परिवार पालना काफी मुश्किल हो रहा है। कंट्रोल से जो कुछ भी मिलता है उसी से गुजारा करना पड रहा है। पूर्व ठेका श्रमिक परिवार ने भी कुछ इसी प्रकार की परेशानियों को बयां किया। उनका कहना था कि मजबूरी के चलते उन्हें उद्योग से हिसाब तक करना पडा क्योंकि बच्चो की फीस भरने एवं घर चलाने में काफी परेशानी आ रही थी। उनका कहना था कि कोरोना काल उनके परिवार के लिए आफत लेकर आया सरकार ने तो कोई मदद की नहीं अलबत्ता नौकरी भी चली गई। वही अब महंगाई की मार ने पुरे परिवार को तोड कर रख दिया है। लाॅकडाउन के दौरान जो भी संचित निधि थी उससे काम चला लिया, सोचा था कि बिमारी के खात्मे के साथ पुनः रोजगार मिल जाऐगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। कई माह से बेरोजगारी के साथ-साथ महंगाई की मार भी झेल रहे है।
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