नागदा - इक्कीसवां रोजा - दोजख से निजात का अशरा...



Nagda(mpnews24)।  इक्कीसवें रोजे से तीसवें रोजे तक के दस दिन-दस रातें रमजान माह का आखिरी अशरा (अंतिम कालखंड) कहलाती है। चूंकि आखिरी अशरे में ही लैलतुल कद्र-शबे-कद्र (वह सम्माननीय रात की विशिष्ट रात्रि जिसमें अल्लाह यानी ईश्वर का स्मरण तमाम रात जागकर किया जाता है तथा जिस रात की बहुत अज्र यानी पुण्य की रात माना जाता है।

क्योंकि शबे-कद्र से ही ईश्वरीय ग्रंथ और ईश्वरीय वाणी यानी पवित्र कुरआन का नुजूल या अवतरण शुरू हुआ था) आती है, इसलिए इसे दोजख से निजात का अशरा (नर्क से मुक्ति का कालखंड) भी कहा जाता है। शरई तरीके (धार्मिक आचार संहिता के अनुरूप) से रखा गया श्रोजाश् दोजख (नर्क) से निजात (मुक्ति) दिलाता है।

रमजान माह रू इबादत का महीना...
कुरआने-पाक के सातवें पारे (अध्याय-7) की सूरह उनाम की चैंसठवीं आयत में पैगम्बरे-इस्लाम हजरत मोहम्मद को इरशाद (आदेश) फरमाया- आप कह दीजिए कि अल्लाह ही तुमको उनसे निजात देता है। यहाँ यह जानना जरूरी होगा कि आप से मुराद हजरत मोहम्मद से है और तुमको से यानी दीगर लोगों से है।

सच्चाई के साथ रखा गया रोजा दोजख से निजात पाने का रास्ता और तरीका है
मतलब यह हुआ कि लोगों को अल्लाह ही हर रंजो-गम और दोजख (नर्क) से निजात (मुक्ति) देता है। सवाल यह उठता है कि अल्लाह (ईश्वर) तक पहुंचने और निजात (मुक्ति) को पाने का रास्ता और तरीका क्या है? इसका जवाब है कि सब्र (संयम) और सदाकत (सच्चाई) के साथ रखा गया रोजा ही अल्लाह तक पहुंचने और दोजख से निजात पाने का रास्ता और तरीका है।
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