पुराणों में यज्ञ को देवताओं का भोजन कहा गया है और कहा गया है कि अग्निहोत्र से बढ़कर पवित्र कर्म संसार में अन्य कुछ नहीं यज्ञ सभी देवताओं की आत्मा है। यज्ञ, दान, तप, रूप, कर्म त्यागने योग्य नहीं बल्कि यह तो करने योग्य सुकर्म है। यज्ञ से देवता संतुष्ट होते हैं और संतुष्ट होकर हम सबको आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यज्ञ से देवता जीते हैं ऐसा भी कहा गया है। आप सभी जानते हैं कि आज जो प्राकृतिक घटनाक्रम एवं आपदाएं हम देख रहे हैं इसके पीछे देवी शक्तियों का एवं प्रकृति का असंतुष्ट होना ही है। यज्ञ से देवी शक्तियां पुष्ट हो होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
गायत्री शक्तिपीठ के परिव्राजक भगवान दास ने सभी परिजनों का आभार व्यक्त किया और ऐसी आशा अपेक्षित की है कि इसी तरह के शुभ कार्य आप सभी समय-समय पर करते चलें। आने वाले दिनों में गायत्री जयंती के शुभ अवसर पर भी सभी को अपने घर में अग्निहोत्र का क्रम बड़े व्यापक स्तर पर चलाने का आग्रह किया है।
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