समय से पूर्व आ रही है थर्ड वेव
कई जाने-माने चिकित्सकों ने कोरोना संक्रमण की थर्ड वेव डेल्टा प्लस की आशंका 6 से 8 सप्ताह अर्थात सितम्बर-अक्टुबर माह में आने की जताई थी। लेकिन संक्रमण का वेरिएंट इतनी जल्द आ जाऐगा इसकी किसी ने कल्पना भी नहंीं की थी। चुंकि वेरिएंट की एन्ट्री जल्द से हुई इसलिए सरकार को अनलाॅक करने से पहले विशेषज्ञों की रिसर्च पूर्ण होने के बाद आने वाली रिर्पोट का इंतजार करना चाहिए। जीविका से ज्यादा जीवन जरूरी है इसलिए हर संभव प्रयास जीवन को बचाने के होना चाहिए। सरकार को भी चिकित्सकों से विचार-विमर्श करना चाहिए चूंकि तिसरी लहर की आशंका अक्टूबर में आने की थी लेकिन अब वो जून में ही सर उठाने लगी है। सरकार व प्रशासन यदि अभी भी नहीं चेता तो तबाही का वह मंजर होगा जो अप्रैल, मई से ज्यादा भयावह होगा।
चिकित्सकों का मानना है कि डेलटा प्लस वेरिएंट इतना घातक है कि जिस व्यक्ति को इसका संक्रमण होगा उस मरीज की संक्रमण फैलाने की क्षमता 100 गुना ज्यादा होगी। वहीं डेल्टा प्लस वेरिएंट मात्र 5 दिनों में मरीज के लंग्स को पुरी तरह से खा जाता है या यूं कहें कि लंग्स को पूर्ण रूप से नष्ट कर देता है।
समीपस्थ शहर रतलाम में फिर बिगड रहे हालात
कोरोना संक्रमण की रफ्तार भले ही कम हो गई है, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। उज्जैन के बाद समीपस्थ रतलाम शहर में भी डेल्टा वेरिएंट ने दस्तक दे दी है। रतलाम के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी सहित करीब 20 लोगों की रिर्पोट पाॅजिटिव आई है। स्वास्थ्य विभाग के मुखिया के डेल्टा संक्र्रमित पाऐ जाने के बाद अब पूरा महकमा हाई अलर्ट पर है। जिन लोगों की रिर्पोट पाॅजिटिव आई है वह सभी स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में है। बताया जाता है कि विभाग द्वारा ऐसे लोगों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे जिन्हें बुखार बार-बार आ रहा था।
कोरोना और ब्लैक फंगस से भी बडा खतरा
डेल्टा वायरस कोरोना और ब्लैक फंगस से भी अधिक खतरनाक है। यही कारण है कि रतलाम में जो लोग अब बार-बार बीमार हो रहे हैं उन लोगों पर स्वास्थ्य विभाग विशेष तौर पर नजर रखा रहा है। मेडिकल काॅलेज में वर्तमान में जो मरीज भर्ती हैं उनमें से भी कुछ डेल्टा के शिकार हैं, इसी कारण से वह डिस्चार्ज नहीं हो सके हैं। जिन लोगों की रिर्पोट पाॅजिटिव आई है, उन सभी का उपचार जारी है।
वैक्सीनेटेड होना रहेगा फायदेमंद
डेल्टा की चपेट में आए मरीजों में से कुछ का टीकाकरण हो चुका था। यही कारण है कि उनकी तबीयत इतनी नहीं बिगडी। मरीजों को बुखार उतरने के साथ पुनः चढ रहा है लेकिन वैक्सीनेटेड होने के कारण बहुत बहुत ज्यादा विपरित प्रभाव पडता नजर नहीं आ रहा है।
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