नागदा जं.-कस्तुरबा गांधी छात्रावास के सामने निजी भूमि पर किसी भी प्रकार के निर्माण पर न्यायालय ने लगाई रोक राजस्व विभाग एवं नपा के अमले ने निजी भूमि को बता दिया था शासकीय, बना रहे थे उद्यान

MP NEWS24- नागदा-जावरा स्टेट हाईवे पर नागदा बायपास से लगी हुई कस्तुरबा गांधी छात्रावास के आसपास शासकीय भूमि के सीमांकन के नाम पर निजी जमीन की नपती के मामले में पिडित को न्यायालय द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खंड नागदा जिला उज्जैन से राहत मिली है। 11 अक्टूबर को जारी आदेश में इस मामले में न्यायालय ने प्रतिवादीगण को निर्देशित किया है कि वादोक्त भूमि सर्वे नम्बर 295/2 रकबा 0.463 हे. पर स्वयं या अन्य किसी के माध्यम से अवैध निर्माण कार्य ना करें और ना करवायें। इसी प्रकार यह भी निर्णय में कहा है कि प्रतिवादीगण वादीगण के आधिपत्य की वादोक्त भूमि सर्वे नं. 295/2 रकबा 0.463 हे. पर स्वयं या अन्य किसी के माध्यम से अवैध कब्जा ना करें और ना करवाये। वादी द्वारा न्यायालय में नगर पालिका परिषद के मुनपा अधिकारी, प्रशासक एवं जिला कलेक्टर को प्रतिवादी बनाया गया है।

न्यायालय द्वारा उक्त निर्णय दिए जाने में सबसे बडा आधार राजस्व विभाग का पंचनामा बना है। राजस्व विभाग द्वारा बनाएं गए पंचनामे में खुद ही सिद्ध कर दिया कि भूमि स्वामी अपनी ही जमीन पर स्थापित है इसके अलावा राजस्व विभाग फील्ड बुक व नजरी नक्शा भी न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर पाया। ऐसी स्थिति में न्यायालय द्वारा वादी के पक्ष में स्थगन प्रदान किया है।
क्या है मामला
मामल में वादी कन्हैयालाल पिता बालू उर्फ बालारामजी, जीवन पिता बालू उर्फ बालारामजी कृषकगण ग्राम पाडल्यांकलां तहसील नागदा द्वारा न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया गया था। वाद में वादी ने बताया है कि  कस्तुरबा गांधी छात्रावास के पास सर्वे नं. 294/मिन1 में अमृत गार्डन बनना है, लेकिन राजस्व विभाग को कतिपय लोगों द्वारा अतिक्रमण करने की शिकायत की गई थी। इसमें वादीगण द्वारा सीमांकन के लिए आवेदन 24 फरवरी 2021 को राजस्व विभाग में दिया था। पॉंच महिने बाद 20 जुलाई को राजस्व विभाग व नगर पालिका की टीम भूमि के सीमांकन करने पहुुॅंची थी, उक्त नपती चौथी बार हो रही थी। नपती के दौरान राजस्व विभाग ने नगर पालिका की टीम को बुलाकर नपती कराई। सीमांकन के दौरान प्रशासनिक अमले ने शासकीय भूमि के स्थान पर जीवन और कन्हैयालाल की जमीन को शासकीय बताकर वहॉं ओटा गाढने के बाद रात में कॉलम भी खुदवा दिए थे। नपती के दौरान विवाद की स्थिति बनने पर टीम ने पुलिस बल बुलाया, पुलिस ने सीमांकन का विरोध करने वाले जीवन, गोपाल, कन्हैयालाल, जानीबाई व दिशा पर धारा 353, 332, 334 में प्रकरण दर्ज कर जेल भेज दिया था। इसके बाद जीवन और कन्हैयालाल ने इस मामले को न्यायालय में चुनौती दी थी। विद्वान न्यायाधीश नदीम जावेद खान के न्यायालय में प्रकरण की पैरवी अखिलेश शाह ने करते हुए जमीन से जुडे साक्ष्य प्रस्तुत किए। इसके बाद न्यायालय ने नगर पालिका व प्रशासक को नोटीस जारी किया। नगर पालिकिा ने पंचनामा प्रस्तुत किया, पंचनामे में यह लिखा था कि पीडित के नाम ना तो कम जमीन है औ ना ही ज्यादा। इसके बाद फील्ड बुक तथा नजरी नक्शा मांगा जो नगर पालिका प्रस्तुत नहीं कर पाई। लगभग महिनेभर चले प्रकरण में स्पष्ट हो गया कि यह जमीन प्राथमिक रूप से जीवन और कन्हैयालाल की है। जिसके बाद न्यायालय ने स्थगन देते हुए यह किसी भी प्रकार के निर्माण पर भी रोक लगा दी है।
पंचनामे में पीडित को क्लीन चीट दी तो फिर अतिक्रमण कैसे बताया ?
भूमि के सीमांकन के मामले में प्रशासन द्वारा बनाया गया मौका पंचनामा कई सवाल खडे कर रहा है। क्योंकि पंचनामे में यह कह दिया कि सीमांकन के दौरान न तो जमीन कम पाई गई और ना ही ज्यादा पाई गई है। ऐसी स्थिति में फिर अतिक्रमण कैसे बता दिया गया ?

Post a Comment

[blogger]

MKRdezign

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget