MP NEWS24-वर्ष 2014 से 2021 तक एक लाख से अधिक काल्पनिक हितग्राहीयों द्वारा उज्जैन जिले की राशन दुकानों से प्रतिमाह राशन लिया तथा शासन को करोडों रूपये का चुना कंट्रोल दुकानों के संचालकों द्वारा लगा दिया गया। इसी प्रकार के मामले में रतलाम जिला प्रशासन द्वारा 8 कंट्रोल संचालकों पर एफआईआर दर्ज करवा दी लेकिन राजनीतिक दबाव में उज्जैन जिला प्रशासन गरीबों के राशन को डकारने वालों पर आज तक कार्रवाई नहीं कर पाया है। ऐसे में प्रशासन की लुंज-पूंज कार्रवाई से कंट्रोल संचालकों के हौसले बुलंद है तथा वह गरीबों के राशन पर आज भी डाका डालने से बाज नहीं आ रहे हैं।क्या है मामला
आलोट विधायक के प्रश्न के प्रतिउत्तर में खाद्य मंत्री बिसाहुलाल सिंह ने बताया है कि रतलाम में अपात्र हितग्राहीयों के नाम से राशन निकालने पर 8 दुकानों के संचालकों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई गई तथा उचित मुल्य दुकानें निलंबित की गई है। उन्होंने बताया है कि मध्यप्रदेश सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश 2015 की कण्डिका 16 (2) अनुसार दुकान मासिक आवंटन की 10 प्रतिशत से अधिक मात्रा का प्रतिस्थापन, व्यपवर्तन अथवा अपमिश्रण पाने पर आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की धारा 7 के अंतर्गत अभियोजन की कार्यवाही अनिवार्य रूप से किये जाने का प्रावधान है तथा कण्डिका 16 (8) अनुसार उचित मुल्य दुकान के संचालन में अनियमितता पाए जाने पर आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अंतर्गत कलेक्टर द्वारा अभियोजन की कार्यवाही हेतु आदेश दिए जाते हैं।
जिले में एक लाख से अधिक काल्पनिक हितग्राही थे
ततकालीन खाद्य मंत्री ने बताया था कि ततसमय कराई गई जांच में जिलावार प्राप्त आंकडों में उज्जैन जिले में वर्ष 2017 में भारी अंतर देखने को मिला है। उन्होंने बताया था कि वर्ष 2016 में उज्जैन जिले में कंट्रोल के माध्यम से राशन प्राप्त करने वाले हितग्राहीयों की संख्या जहॉं 13 लाख 34 हजार 174 थी वहीं वर्ष 2017 में वह घट कर 12 लाख 16 हजार 665 हो गई। ऐसे में उज्जैन जिले में 1 लाख 17 हजार 509 काल्पनिक सदस्यों का राशन संभवतः कंट्रोल माफियाा डकार रहा था। जिसकी विस्तृत जांच किए जाने की बात भी उनके द्वारा कही गई थी।
150 करोड का घोटाला उजागर होने की संभावना ?
उज्जैन जिले में जहॉं में 1 लाख 17 हजार 509 काल्पनिक सदस्यों को कम कर दिया गया लेकिन उक्त काल्पनिक सदस्यों को कब से राशन उपलब्ध करवाया जा रहा था इसकी कोई जांच संबंधी कंट्रोलों की नहीं की गई। साथ ही इन काल्पनिक सदस्यों को विभाग में किन लोगों ने अंकित किया इसकी भी कोई जांच नहीं की गई। यदि जांच होती तो कंट्रोल माफिया जेल की दिवारों के पीछे होते। लेकिन इस पुरे मामले के उजागर होने के बाद अधिकारी लाभ-शुभ के फेरे में उलझ गए, तथा अधिकारियों ने कंट्रोल संचालकों से मोटी राशि भी वसुली तथा पुरा मामला लगभग दबा दिया गया है, जिसमें अधिकारियों से लेकर उनके राजनीतिक आका तक मिले हुए हैं।
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