MP NEWS24-मुस्लिम समाजजनों के ईबादत के पवित्र रमजान माह का पहला अशरा चल रहा है। रमजान माह का पहला अशरा (प्रारंभ यानी शुरू के दस रोजे) रहमत (ईश्वर की कृपा) का माना जाता है। यानी शुरुआती दस रोजे किसी दरिया के मानिन्द हैं जिसमें अल्लाह की रहमत का पानी बहता रहता है।बेशुमार नेकियों का हकदार रोजेदार
रोजादार तक्वा (सत्कर्म-संयम) को अपनाते हुए जब रोजा रखता है तो वह बेशुमार नेकियों का हकदार हो जाता है। ये नेकियां सदाकत (सच्चाई) और सदाअत (सात्विकता) का सैलाब बनकर उसके लिए बख्शीश की दुआ अल्लाह से करती हैं। कुरआने पाक (पवित्र कुरआन) की तीसवें पारे (अध्याय-30) की सूरह अलइन्किशाक की आयत नंबर छः में जिक्र है या अय्युहल इन्सानु इन्नाका कादिहुन इला रब्बेका कदहन फमुलाकीह यानी ऐ इंसान तू अपने परवरदिगार की तरफ (पहुंचने में) खूब कोशिश करता है सौ उससे जा मिलेगा।
रोजा रहमत का दरिया
इस आयत को रोजे की रोशनी में देखें तो उसकी तशरीह इस तरह होगी कि रोजा रहमत का दरिया तो है ही, नेकी के सैलाब के साथ अल्लाह तक (तरफ) पहुंचने का जरिया भी है। इसको यूं भी कहा जा सकता है कि जब रास्ता लंबा हो, दुश्वारियां हों, भटकने के आसार हों, कांटों-कंकरों की चुभन से पांवों के लहूलुहान होने का डर हो तो ईमानदारी के साथ रखा गया रोजा राह को हमवार और दुश्वारियों को दरकिनार कर देता है। यानी रूहानी नजरिए से अल्लाह तक पहुंचने का रोजा एप्रोच रोड है।
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