MP NEWS24-माशाअल्लाह! माहे-मुबारक रमजान का कारवां अब चौदहवें रोजे तक आ पहुंचा है। रोजेदार के लिए वैसे तो हर रोजा खुशियों का खजाना है। मगफिरत के इस अशरे में चौदहवां रोजा जन्नत के दरवाजे पर सब्र की दस्तक है। अमूमन मझला रोजा भी शुमार किया जाता है।इस की अपनी फजीलत (महिमा) और अजमत (गरिमा) है। शरई (तरीके से रखा गया रोजा) जिसमें हर किसी की बुराई, बदगुमानी, बेईमानी, बेहयाई, बेअदबी से बचा जाता है) ईमान का निशान और इंसानियत की पहचान है। चौदहवें रोजे तक आते-आते रोजादार सब्र का आदी हो जाता है। इसलिए रोजा रोजेदार के लिए जन्नत का फरियादी हो जाता है। हदीस की रोशनी में भी रोजा जन्नत के दरवाजे पर सब्र की दस्तक है।
मिसाल के तौर पर हदीसे-पाक यानी बुखारी शरीफ की जिल्द अव्वल (प्रथम खंड) के सफह् नंबर दो सौ पैंतालिस (पृष्ठ संख्या-245) पर यह हदीस दर्ज हैं मोहम्मद सल्ल. ने फरमाया कि जन्नत के आठ दरवाजे हैं, उनमें एक दरवाजा रय्यान है, उसमें इससे वे ही जाएँगे जो रोजा रखते हैं।
इसमें मसअला ये है कि जो ईमान की वजह से रोजा रखेगा सवाब (पुण्य) के लिए तो उसके सब गुनाह माफ कर दिए जाएंगे। जिसने बगैर किसी शरई मजबूरी के एक रोजा छोड़ दिया तो जमाने भर का रोजा उसकी कजा (क्षतिपूर्ति) नहीं हो सकता, अगरचे बाद में रख ले।
यहां यह समझना जरूरी है कि चोदहवें रोजे की आमद (आगमन) दरअसल मगफिरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) में है और मगफिरत के लिए कसरत से (बहुलता से) तौबा-ए-अस्तगफार (गुनाहों के लिए प्रायश्चित) की जाती है। रोजा (सही तरीके से) रखना अल्लाह (ईश्वर) के सामने सबूत रखता है। रोजा, परहेजगारी का एहतिमाम तो है ही जन्नत का इंतजाम भी है।
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